ये नज़्मे मेरी नहीं,
सच कहा तुमने......
किसी और की होगी...हो सकती है,
जब ये थी,तब मैं नहीं था,
आज तुम हो पर वो नहीं......
जिनकी ल्फ़्जों को जोड़कर
मै तुम्हारी तहरीर लिखता हूँ,
जिनकी आंखों के सपनों में
तुम्हें देखना और सोचना चाहता हूँ,
लफ़्ज़ वही है ....अरमान वही है ...
खुदा की मुक़द्दस शाम वही है ....
जहन में गूँजती पुकार भी वही
पर आज.......मुमकिन नहीं ...
एक शोर सन्नाटे की तरह मन में .....
दबी पांव बैठी है ....पर मैं नहीं ...
राह वही....... राही वही.......
कायनात की सब्ज़-बहार वही
ओ! रेत पर बनी तस्वीर.......
बस इतनी सी एहसां कर दो,
किसी और की दास्ताँ में
तुम मेरे दिल की बात समझ लो!!!