मैं रहूँगा....पर ये जिश्म नहीं
अगली बार दूसरे लिबास में उसे खोजता फिरूँगा....
सिलसिला तो जारी रहेगा ;
ना जाने कब से.....और कबतक...
मेरी रूह अधूरेपन के शाप से भटकता रहेगा;
आख़िर कबतक ??मेरे ख़्वाहिश!
किश्तों में पूरे होते सपनों का हश्र-
ऐसा ही होता है...गूँजती है विफरती हुई आवाज़े
उन गलियों में, आज भी |
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