अनुवाद

Sunday 3 July 2011

बहुत मुश्किल है यह काम.....

बहुत मुश्किल है यह काम
पर उसे यह काम करने दो
इंसान को इंसान बनकर जीने दो
सत्ता और सियासतों का  खेल  तुम्हें मुबारक 
उसे पेट और भूख का खेल  खेलने दो
बहुत मुश्किल है यह काम
पर उसे यह काम करने दो
इंसान को इंसान बनकर जीने दो
पद और पदवियाँ तुम बाँट लों
ख्वाबों की सारी दुनियाँ तुम छांट लों
धरती के सीने में खंजर उसे चलाने दो
बहुत मुश्किल है यह काम
पर उसे यह काम करने दो
इंसान को इंसान बनकर जीने दो
महलों,मंदिरों ,मस्जीदों में तुम पाबन्दियाँ लगाते रहो
तोड़ता है वह पत्थरों -चट्टानों को,  उसे तोड़ने दो
बहुत मुश्किल है यह काम
पर उसे यह काम करने दो
इंसान को इंसान बनकर जीने दो
कर्मकांड का डंका तुम बजाते रहो
शास्त्रों के शस्त्र तुम इनपर चलाते रहो
लिखेंगे कुछ ये भी रक्त से अपने, लिखने दो
बहुत मुश्किल है यह काम
पर उसे यह काम करने दो
इंसान को इंसान बनकर जीने दो

और मैं चुप रहा |

भोजन कराने की  जिद
सुबह-सुबह माँ पर  झिड़का
माँ चुप रही
एक बूढ़े रिक्शा वाले को
स्टेशन जल्द न पहुंचाने पर
आँखे  तरेरे और  झल्लाया
वह चुप रहा
दफ़्तर में  चपरासी के सलाम न ठोकने  पर
किसी और बहाने  उसे खूब फटकारा
वह  चुप रहा
एक  जरूरी बैठक रद्द हुई, अचानक
आयोजक को लताड़ा,फोन पर
वह भी  चुप रहा
भोजन का  समय
चपरासी आया, आँख तरेरे
कहा- साहब! बुला रहे है
छोड़ कर टिफ़िनबाक्स  मैं दौड़ा-भागा
साहब ने आयोजक के सामने  फटकार लगाई
मैं चुप रहा.....
रात देर हुई दफ़्तर में
सुनसान स्टेशन पर लौटा
वही बूढ़ा रिक्शा वाला
घर ले जाने से मना कर गया 
मैं चुप रहा......
गली के आवारा कुत्तों का  दहशत
और अमावस की काली रात
थका हारा पैदल ही घर ?
मैं चुप रहा.....
रुंधी गले से पुकारता रहा
सब सो चूके  थे
अंधकार को चीरते एक आवाज़-
"सारा दिन कुछ खाया नहीं क्या"?
माँ  आँखों से पूछती  रही-
आंखे बचाते  कौर उठाए
और मैं  चुप रहा |