कविगुरु रवींद्र नाथ ठाकुर की एक कविता का अनुवाद
"
बिदाई”
क्षमा करो,धीरज धरो- हो सुंदरत्तम
विदाई के क्षण| मृत्यु नहीं,ध्वंस नहीं न ही विच्छेद का भय ,
केवल हो समापन |
स्मृति में केवल सुख रहे, वेदना में रहे गीत,
नाव हो तीर,
श्रांत हो खेल, हो शांत वासनाएँ
नभ हो नीड़||
समय के नम्र हाथ दे थपकियाँ मेरे माथे पर
आँखों में लाए नींद-
हृदय के कपाटों में खिल उठे चुपचाप
निशा कुसुम |
आरती के शंखनादों में हो सम्पूर्ण परिणाम
हँसी नहीं, अश्रु नहीं उदार वैराग्यमय
हो परम विश्राम ||
प्रात: जो खगकुल गए थे विचरने नभ
रुक जाएँ अभी |
प्रात: जो कलिकुल जागे थे खिलखिलाकर मूँद लें नयन |
प्रात: जो वायुदल घूम रहे थे हो चंचल
ठहर जाएँ ...जाएँ ठहर|
नीरवता में हो उदय असीम नक्षत्रलोक
परमनिर्वाक ||
हे महासुन्दर शेष , हे विदाई अनिमेष
हे सौम्य विषाद ,
क्षण भर तो ठहरों पोंछकर नयननीर
दो आशीर्वाद|
क्षण भर तो ठहरों छूँ लूँ तुम्हारे चरण
तब यात्रापथ में-
धरूँ निष्कम्प प्रदीप नि:शब्द करूँ आरती
इस निस्तब्ध जगत में||