कल ईश्वर मेरे सम्मुख पधारे;
मुझ से कहा -
"तुम अपने पुजारी से सवाल करो ;
उसकी हर बात को नकारते जाओ,
शास्त्रों की बातों पर हंसो,
कर्मकांड का विरोध करो.....
उसके विद्वता को ;
भक्ति को चुनौती दो,
निडर होकर !
यदि वह तुम्हारी सब सुने और मुसकाए .....
उसके शांत,मंद मुस्कान भरे चेहरे पर मेरी परछाई देखना;
चरण पकड़ क्षमा याचना कर लेना,
मना लेना उसे हर हाल में तुम !
वह तुम्हें क्षमा कर देंगे |
तुम मुक्त हो जाओगे मेरे चंगुल से !
और यदि क्रोध आए,
तुम्हारी धृष्टता पर
तुम्हें कोसे ....
डर दिखाए किसी प्रलय का ...
नाश का.....वह!
मेरी पूजा कभी उससे न करवाना;
तुमसे मैं रुष्ट होऊँगा, शाप दे दूंगा तुम्हें ..
कभी न मुक्त होगे मेरे चंगुल से !
डर से काँप रहा था मैं,सुबह देर हो गई दफ्तर के लिए !!!
दिन भर सोचता रहा...
कौन-सी कविता पढ़ी थी मैंने कल......
nice brother
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